अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने बताया कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के प्रथम निदेशक ने अपनी रिपोर्ट लिखा है कि अटाला माता मंदिर को तोड़ने का आदेश फिरोज शाह ने दिया था लेकिन हिंदुओं के संघर्ष के कारण अटाला माता मंदिर को तोड़ नहीं पाया जिसपर बाद में इब्राहिम शाह ने अतिक्रमण कर मंदिर का उपयोग मस्जिद के रूप में करने लगा।
अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने बताया कि कलकत्ता स्कूल ऑफ आर्ट के प्रिंसिपल E B Havell ने अपनी पुस्तक इंडियन अर्चिकटेक्चर इट्स साइकोलॉजी, स्ट्रक्चर, एंड हिंस्ट्री फ्रॉम द फर्स्ट मोहम्मडन इन्वेजन तो प्रिजेंट डे में अटाला मस्जिद की प्रकृति व चरित्र को हिन्दू बताया है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनेक रिपोर्ट्स में अटाला मस्जिद के चित्र दिए गए है जिनमें त्रिशूल, फूल, गुड़हल के फूल, त्रिशूल आदि मिले है। वर्ष 1865 के एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल के जनरल में अटाला मजिस्द के भवन पर कलश की आकृतियों का होना बताया गया है।अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने बताया कि अटाला मस्जिद ही अटाला माता मंदिर का मूल भवन है जोकि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन एक संरक्षित स्मारक है और एक राष्ट्रीय महत्व का स्मारक है। केस में अटाला माता, आस्थान अटाला माता, योगेश्वर श्रीकृष्ण सांस्कृतिक अनुसंधान संस्थान ट्रस्ट, क्षत्रिय शक्तिपीठ विकास ट्रस्ट, आर्य संस्कृति संरक्षण ट्रस्ट व अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह वादी है और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, प्रबंधन कमेटी अटाला मस्जिद विपक्षी है जिसकी सुनावई माननीय न्यायाधीश श्रीमती किरन मिश्रा जी के न्यायालय में हुई।
आज सुनावई के दौरान अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह, अधिवक्ता उपेंद्र विक्रम सिंह, अधिवक्ता इशांत प्रताप सिंह सेंगर, अधिवक्ता विमल कुमार सिंह, अधिवक्ता सूर्या सिंह, अधिवक्ता अभिनव सिंह, अधिवक्ता रवि प्रकाश पाल, अधिवक्ता धनंजय तिवारी, अधिवक्ता राकेश पाल, अधिवक्ता नीलेश यादव, अधिवक्ता अजय सोनकर, अधिवक्ता रेनू, अधिवक्ता दीपक पाल, अधिवक्ता तेज बहादुर यादव, अधिवक्ता विपिन पाल, अधिवक्ता दिनेश पाल, अधिवक्ता मान सिंह यादव, अधिवक्ता संतोष सिंह, अधिवक्ता अवनीश दुबे, अधिवक्ता हिमांशु श्रीवास्तव, अधिवक्ता नीलेश, अधिवक्ता प्रमोद यादव व आर्य संस्कृति संरक्षण ट्रस्ट के प्रदेश अध्यक्ष उपस्थित रहे। माननीय न्यायालय ने सुनावई में तथ्यों को संज्ञान में लेते हुए इश्यू नोटिस का आदेश जारी किया।