एक नसीहत
शादी में 500 रु0 निकाह पढ़ावे वाले मौलवी को देते तकलीफ होती है, जूता चुरवायी साली को 5 हज़ार रु0 आसानी से दे दिये जाते हैं।
मौलवी को दीनी तालीम के लिए 500 रु0 महीना नही दिया जाता, बच्चों की अंग्रेज़ी तालीम के लिए 5 हज़ार रु0 महीना फीस दे दी जाती है।
कब्र में तलक़ीन पढ़ने वाले मौलवी के लिए 500 रुपये जेब से नहीं निकलते और उसी मुर्दे के तीजे-चालिसवें पर 500 लोगो की दावत कर दी जाती है।
क़ुरआनख़्वानी, महफिल व मजलिस पढ़नें पर आम मौलवी व शायर को 500 रु देने का दिल नहीं होता, लेकिन 1 लाख रुपये का खाने और टैन्ट पर खर्च कर दिये जाते है।
जब हम बुनियादी कामों को अन्जाम देने वालों का हक़ मारेंगे...! तो क़ौम के यही हालात होंगे...जो हो रहे हैं।
एस.एन.लाल