रिपोर्ट -सैयद रिज़वान मुस्तफ़ा
ईरान का इतिहास उन संघर्षों से भरा पड़ा है, जो इस्लामी क्रांति के बाद से दुनिया की "शैतानी ताकतों" से लड़ने और खुद को एक मजबूत राष्ट्र के रूप में स्थापित करने की कहानी बयान करता है। 1979 में अयातुल्लाह खुमैनी की अगुआई में ईरान ने इस्लामी क्रांति के ज़रिए न केवल अमेरिका समर्थित शाह रज़ा पहलवी को सत्ता से बाहर किया, बल्कि अपनी संस्कृति, राजनीति और आर्थिक नीति को इस्लामी विचारधारा पर आधारित किया। उनके बाद, अयातुल्लाह अली खामेनई ने नेतृत्व संभाला और ईरान को एक वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित किया। आइए इन दोनों महान नेताओं की शख्सियत और उनके दौर की प्रमुख उपलब्धियों पर नज़र डालें।
अयातुल्लाह खुमैनी: इस्लामी क्रांति के जनक
भारत की सरजमीं की अयोध्या मंडल के बाराबंकी के महादेवा,खुर्द मऊ करबला के पास स्थित महाभारत काल की सरजमी किन्तुर की स्वतंत्रता संग्राम की मिट्टी की खुशबू समेटे अयातुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी हिंदी ने इस्लामी विचारधारा और ईरानी संस्कृति को बचाने के लिए जीवनभर संघर्ष किया।
1. इस्लामी क्रांति: 1979 में खुमैनी की अगुआई में ईरान में इस्लामी क्रांति हुई, जिसने दुनिया को चौंका दिया। इस क्रांति ने शाह की निरंकुश सरकार को उखाड़ फेंका और अमेरिका के प्रभाव को खत्म कर दिया।
2. इस्लामी विचारधारा का प्रसार: खुमैनी ने "विलायत-ए-फकीह" का सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसमें धार्मिक विद्वानों के नेतृत्व को सर्वोपरि माना गया। यह ईरान की राजनीतिक संरचना का आधार बना।
3. अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण: खुमैनी ने अमेरिका को "शैतान-ए-अज़ीम" (महान शैतान) करार दिया और दुनिया भर के मुसलमानों को एकजुट करने का आह्वान किया। उनकी नीतियों ने अमेरिका और उसके सहयोगियों के लिए एक नई चुनौती पैदा की।
अयातुल्लाह अली खामेनई: स्थिरता और विकास का नेतृत्व
1989 में खुमैनी के निधन के बाद, अयातुल्लाह अली खामेनई ने ईरान का नेतृत्व संभाला। उन्होंने खुमैनी की विरासत को बनाए रखा और देश को नए युग में प्रवेश कराया।
1. सैन्य और आर्थिक मजबूती: खामेनई के नेतृत्व में ईरान ने अपनी सैन्य क्षमताओं को बढ़ाया और आर्थिक प्रतिबंधों के बावजूद आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाए।
2. क्षेत्रीय प्रभाव: ईरान ने इराक, सीरिया, लेबनान, गाजा और यमन जैसे देशों में अपनी उपस्थिति मजबूत की। हिज़बुल्लाह और हूती जैसे संगठनों को समर्थन देकर, ईरान ने मध्य-पूर्व की राजनीति में अपनी अहम भूमिका बनाई।
3. वैश्विक संघर्ष: खामेनई ने अमेरिका और उसके सहयोगियों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया। ईरान के परमाणु कार्यक्रम और क्षेत्रीय विस्तार ने उसे एक महत्वपूर्ण वैश्विक ताकत बना दिया।
ईरान-अमेरिका तनाव: दशकों पुरानी दुश्मनी
ईरान और अमेरिका के बीच तनाव इस्लामी क्रांति के समय से ही चला आ रहा है। अमेरिका ने ईरान को नियंत्रित करने के लिए आर्थिक प्रतिबंध लगाए, लेकिन अयातुल्लाह खामेनई के नेतृत्व में ईरान ने इनका डटकर सामना किया।
1. परमाणु समझौता: 2015 में हुआ परमाणु समझौता ईरान और पश्चिमी देशों के बीच तनाव कम करने की दिशा में एक कदम था, लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ने 2018 में इसे रद्द कर दिया। इसके बाद ईरान ने अपना परमाणु कार्यक्रम तेज कर दिया।
2. क्षेत्रीय संघर्ष: अमेरिका ने मध्य-पूर्व में अपनी उपस्थिति बनाए रखने के लिए सैन्य ठिकाने स्थापित किए, लेकिन ईरान ने अपने सहयोगी संगठनों के ज़रिए इन पर दबाव बनाए रखा।
रेड सी में हूती विद्रोही: ईरान का प्रॉक्सी प्रभाव
यमन के हूती विद्रोही ईरान के समर्थन से अमेरिका और सऊदी अरब के लिए एक बड़ी चुनौती बन गए हैं। रेड सी और बाब-अल-मंदेब जैसे सामरिक महत्व वाले क्षेत्रों में उनकी सक्रियता ने वैश्विक व्यापार और ऊर्जा आपूर्ति के लिए खतरा पैदा कर दिया है।
ईरानी सहायता: हूती विद्रोहियों को ईरान से हथियार और तकनीकी प्रशिक्षण मिलता है, जिससे उनकी सैन्य ताकत बढ़ती है।
रेड सी में हमले: हूती विद्रोहियों ने कई तेल टैंकरों और व्यापारिक जहाजों पर हमले किए, जिससे अमेरिका और उसके सहयोगियों को भारी आर्थिक नुकसान हुआ।
सऊदी-अमेरिका गठबंधन पर दबाव: हूती विद्रोहियों की ताकत ने सऊदी अरब और अमेरिका के गठबंधन को कमजोर कर दिया है।
गाजा, लेबनान, इजराइल और सीरिया: ईरान की रणनीतिक भूमिका
ईरान ने गाजा, लेबनान, और सीरिया में अपनी उपस्थिति और सहयोगी संगठनों के ज़रिए इजराइल को चारों ओर से घेरने की रणनीति अपनाई है।
1. हिज़बुल्लाह: लेबनान में हिज़बुल्लाह को समर्थन देकर, ईरान ने इजराइल के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा तैयार किया।
2. गाजा और हमास: हमास और अन्य संगठनों को सहायता देकर, ईरान ने गाजा में इजराइल के खिलाफ प्रतिरोध को मजबूत किया।
3. सीरिया में सैन्य उपस्थिति: बशर अल-असद की सरकार का समर्थन करना,,ईरान ने सीरिया को लोगो की स्थिति मजबूत की। लेकिन अब खामोशी अख्तियार कर ली।
सऊदी अरब और ईरान के बदलते संबंध
सऊदी अरब और ईरान के बीच हाल ही में हुए समझौते ने क्षेत्रीय राजनीति को एक नया मोड़ दिया है। यह समझौता मध्य-पूर्व में स्थिरता लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
क्षेत्रीय शक्ति संतुलन: सऊदी अरब और ईरान के बीच शांति वार्ता ने अमेरिका के प्रभाव को कमजोर किया है।
यमन संघर्ष पर असर: यह समझौता यमन में शांति बहाल करने की संभावना को बढ़ा सकता है।
ईरान का भविष्य और वैश्विक राजनीति में उसकी भूमिका
ईरान की राजनीति और कूटनीति ने उसे एक क्षेत्रीय शक्ति से वैश्विक खिलाड़ी बना दिया है।
1. आर्थिक आत्मनिर्भरता: प्रतिबंधों के बावजूद, ईरान ने अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाए रखा और आत्मनिर्भरता की दिशा में कदम बढ़ाए।
2. वैश्विक सहयोग: ईरान ने रूस और चीन जैसे देशों के साथ अपने संबंध मजबूत किए हैं, जो अमेरिका के प्रभाव को कमजोर कर सकता है।
3. धार्मिक और सांस्कृतिक प्रभाव: अयातुल्लाह खामेनई के नेतृत्व में ईरान ने दुनिया भर के मुसलमानों को अपनी ओर आकर्षित किया है।
इमाम खुमैनी से अयातुल्लाह अली खामेनई तक का ईरान*
ईरान की कहानी अयातुल्लाह खुमैनी की इस्लामी क्रांति से शुरू होती है और अयातुल्लाह खामेनई के नेतृत्व में जारी रहती है।
इमाम खुमैनी: उन्होंने इस्लामी विचारधारा को ईरान की राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा बनाया।
अयातुल्लाह अली खामेनई: उन्होंने ईरान को एक मजबूत सैन्य और क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्थापित किया।
रेड सी में हूती विद्रोहियों की सक्रियता, गाजा और लेबनान में इजराइल विरोधी आंदोलनों का समर्थन, और सऊदी अरब के साथ बदलते संबंध यह दिखाते हैं कि ईरान अब केवल एक क्षेत्रीय शक्ति नहीं है, बल्कि वैश्विक राजनीति में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बन चुका है।
अयातुल्लाह खुमैनी और अयातुल्लाह खामेनई के नेतृत्व में ईरान ने यह साबित कर दिया है कि प्रतिबंधों और बाहरी दबाव के बावजूद, दृढ़ता और आत्मनिर्भरता के साथ एक राष्ट्र अपनी पहचान और प्रभाव को बरकरार रख सकता है।
आयतुल्लाह अली खामेनई इमामे जमाना के जहूर के आमद की तैयारी में जुटे हुए है,दुनिया के शैतानों की कोई परवाह नहीं है,और अब वो पिछली बंदिशों के बावजूद कही मजबूत है,उन्हें ईश्वर पर पूरा भरोसा है,वो उनकी मदद कर रहा है और इंसानियत बचाने के लिए करेगा भी।